Friday, April 21, 2017

एक विचलित कवि

एक विचलित कवि हूँ मैं...
किसी के प्यार मैं विचलित...
उसे देख कर विचलित तो कभी सोच के विचलित..
वो प्यार करती है मुझे या नही ये उस से पूछ कर विचलित...
जवाब उसका क्या होगा ये सोच कर विचलित...
ना सुन के मैं विचलित फ़िर जब तक मना ना लिया तब तक मैं विचलित...
हूँ उसको अधूरा पा कर मै विचलित...
उसे फिर खो कर के मै विचलित...
एक तरफा चाहतों के बिच वो मेरी है, था सोच के  बह्रमित...
कभी उसके किसी का हो जाने के डर से मैं विचलित...
किसी गैर भंवरे का उस से बाते करने पर मैं विचलित...
तो कभी उसके चुप रहने पर हू मैं विचलित...
जो दिल मैं उसके लिये दीप जलता है उसके बुझ जाने के डर से मैं विचलित...
वो मेरे बारे मै क्या सोचती होगी ये सोच के विचलित...
सब ठीक हो जाएगा या नही ये खुद से पूछ के विचलित...
क्या उसके दिल मैं जगह बना पाऊँगा या नहीँ  भावुक हो फिर विचलित...
विचलित हूं, के विचलित था और कब तक रहूंगा यूँ विचलित...
जैसे मैं हूँ विचलित वो भी है वहाँ विचलित...
मेरी इन चाहतों के परिणाम /अंजाम को सोच के वो विचलित...
कविता /शायरी /लेख मेरे पढ़कर वो विचलित...
उसकी वज़ह से मुझे कुछ हो ना जाए इस बात से विचलित...
विचलितता के भंवर मै फँसाने से भी वो विचलित...
विचलित हो कर निरन्तर हो रही चिंतित...
चिंतित हो रही हूं क्यों ये सोच कर विचलित...
विचलितता के भँवर मैं वो मेरी वजह से पड क्यों गई मै खुद को कोस कर विचलित...
विचलित से खड़े हैं बीच समुद्र मैं इश्क की लहरों और तूफानों के,
पार जायेंगे दरिया के उस किनारे पर उम्मीदों मैं मै जीवित...
यहाँ कोई प्यार मैं विचलित,
तो कोई नफ़रतॊ मै विचलित...
कोई मुझे जान के चिंतित...
मेरे हालातों को समझ के विचलित...
मेरे जज्बात क्या खयालात क्या बेहद प्यार देख वो विशमित ...
विचलित भी है अब चिंतित,
और चिंतित भी है अब विचलित...
हाल-ऐ-दिल पर मैं चिंतित,
हाल-ऐ- दिल से मैं विचलित !
                         - (यतेश )

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